कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
उस ने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
-परवीन शाकिर
Struggle

Thursday, September 24, 2009
Tuesday, September 22, 2009
दिल ही दुखाने के लिए आ
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ, फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्मो-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ
अब तक दिले-ख़ुशफ़हम को हैं तुझसे उमीदें
ये आख़िरी शम्ऐं भी बुझाने के लिए आ
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहते-जां मुझको रुलाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दारे-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
माना कि मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
जैसे तुम्हें आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ, फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्मो-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ
किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ
अब तक दिले-ख़ुशफ़हम को हैं तुझसे उमीदें
ये आख़िरी शम्ऐं भी बुझाने के लिए आ
इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहते-जां मुझको रुलाने के लिए आ
कुछ तो मेरे पिन्दारे-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
माना कि मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
जैसे तुम्हें आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
Monday, September 21, 2009
असर उसको ज़रा नहीं होता
असर उसको ज़रा नहीं होता ।
रंज राहत-फिज़ा नहीं होता ।।
बेवफ़ा कहने की शिकायत है,
तो भी वादा वफा नहीं होता ।
जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम,
हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता ।
तुम हमारे किसी तरह न हुए,
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता ।
उसने क्या जाने क्या किया लेकर,
दिल किसी काम का नहीं होता ।
नारसाई से दम रुके तो रुके,
मैं किसी से खफ़ा नहीं होता ।
तुम मेरे पास होते तो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता ।
हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर,
हाथ दिल से जुदा नहीं होता |
असर उसको ज़रा नहीं होता ।
रंज राहत-फिज़ा नहीं होता ।।
बेवफ़ा कहने की शिकायत है,
तो भी वादा वफा नहीं होता ।
जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम,
हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता ।
तुम हमारे किसी तरह न हुए,
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता ।
उसने क्या जाने क्या किया लेकर,
दिल किसी काम का नहीं होता ।
नारसाई से दम रुके तो रुके,
मैं किसी से खफ़ा नहीं होता ।
तुम मेरे पास होते तो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता ।
हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर,
हाथ दिल से जुदा नहीं होता |
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